अकरकरा की जडों और फूलों का काढा मर्दांनगी बढाने में मददगार होता है, आदिवासियों के अनुसार प्रतिदिन इसके काढे की 4ग्राम मात्रा रात सोने से पहले लिया जाए तो फायदा होता है।
पातालकोट के आदिवासी मानते है कि अगर बच्चे की जीभ मोटी होने की वजह वह ठीक से ना बोल पाए तो उसे शहद के साथ अकरकरा के सूखे फ़ूलों का चूर्ण लगभग 250 मि.ग्रा दिन में दो बार चटाएं और उसकी जीभ पर चूर्ण मलें।
अश्वगंधा, पुनर्नवा और अकरकरा की समान मात्रा मिलाकर दिन में 2 बार सेवन किया जाए तो यह शरीर को मजबूती प्रदान करता है।
गर्म मसाला या मसाले के रूप में अकरकरा का प्रयोग करने से गैस नहीं बनती, भोजन समय पर ठीक से पच जाता है। आदिवासी अक्सर मसाले के तौर पर इसके सूखे फूलों का उपयोग करते हैं।
अकरकरा और कपूर की बराबर मात्रा लेकर दांतों पर मंजन करने से दांत दर्द दूर हो जाता है और मसूढ़ों का ढीलापन भी मिटता है।
धुम्रपान से काले हुए होंठों को लाल या सामान्य करने के लिए अकरकरा और राई की समान मात्रा पीसकर दिन में तीन चार बार लगाते रहने से कुछ ही दिनों में होठों का रंग सामान्य हो जाता है।
अकरकरा का उपयोग मिर्गी रोग के इलाज के लिये करते है, उनके अनुसार अकरकरा की 100 ग्राम मात्रा लेकर उसे सिरके मे घोंटे और इसमें 100 ग्राम शहद मिला लिया जाए। इस मिश्रण का लगभग 5 ग्राम प्रतिदिन प्रात:काल में रोगी को चटाया जाए तो मिरगी का रोग दूर होता है।
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